रविवार, 22 फ़रवरी 2015

पथरीले राह का मुसाफिर

पथरीले राह का मुसाफिर


कुछ भटकाव भी है और,
कांटे बिछे है राह में ।
प्रकृति भी बधाएं डाल रही,
बिच्छू भी बहुत से घूम रहे है
दोस्तो में है दुश्मन बहुत है,
रोकने राह तुम्हारी मंजिल की
संघर्ष बहुत है, जीवन में
अभी, लंबा रास्ता है मुसाफिर,
हमसफर भी है कई,
थक ना जाना बैठ कर
चल पड़ा है कारवा
साथ तुम्हारे चलने को
बिन देखे कौन है अपना
और कौन यहाँ पराया है
देश की सेवा करने को,
दीये बहुत से जल रहे
अँधियारा मिट जाएगा
गुलाबी सुनहरी सी सुबह
जरूर ही आएगी
कांटो वाले जंगल में
फूल नहीं मुरझाएगे
खरा सोना क्या होता है
भविष्य को लोग बताएगे
देख तुम्हारी पद छाप को
नियति नतमस्तक हो जाएगी 
**
आसान राह नहीं है तेरी मुसाफ़िर
हौसले बुलंद है, परवाह नहीं चट्टानों
बना ही लेगे बगियाँ वतन की
कांटे चुन चुन डालेगे
नित नए आयाम विकास के
हर कोई जब इस जहान में 

नाम तेरा पहचानेगा 
                                       ***** सौण परी


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