रविवार, 22 फ़रवरी 2015

कृषक


गर्मी में, लू के थपेड़े हो,
या फिर,
ठिठरती सर्दी और,
कोहरे वाली रात,
करता रखवाली खेतो की
खिलेपथरीली धरती का
सीना भी, लहलाएँ
बन धान के खेत
नन्नी सी पौध फसल की,
भर देती, मन में उल्लास
सोने से भी सुंदर
कनक के है ये दाने
भरते है, कितनों के भूखे पेट,
दुश्मन से लड़ने, देश सीमा पर
ताकत, वीर जवानो में 
तुम्ही ले कर आते हो
जीवन और जीने की सीख
देता हमेशा ही किसान
धरती माँ का अर्थ, तुमने सही बताया है
मानव रूप मे तू  सबका
भगवान बनकर आया है
मेरा तुम्हें बार बार ही
शत शत है  प्रणाम
  **** सौण परी 

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